न्यूजीलैंड के साथ वन डे सीरीज शुरू होने के पहले जब भारतीय टीम की कप्तानी गौतम गंभीर के हाथों में दी गयी थी और ज्यादातर सीनियर्स को आराम दे दिया गया तो टीम अचानक से काफी कमजोर नजर आने लगी थी। लोगों के मन में यह बात थी कि क्या यह टीम किवी टीम का मुकाबला कर पायेगी। खासकर उस समय जबकि न्यूजीलैंड की टीम टेस्ट सिरीज हर चुकी थी। जाहिर सी बात थी कि किवी खिलाडियों के मन में वन डे मैचों में जीत हासिल कर बदला चुकाने कि भावना प्रबल रही होगी।
खाई ऐसा कुछ हुआ नहीं और गंभीर की अगुवाई में टीम ने बड़ी आसानी से न्यूजीलैंड की टीम को हार का स्वाद चखाया और सीरिज पर कब्ज़ा कर लिया। इस दौरान टीम का प्रदर्शन खासा अच्छा रहा। खुद कप्तान गंभीर ने मोर्चे से अगुवाई की और टीम को कहीं से भी सचिन, सहवाग, धोनी और दूसरे बड़े खिलाडियों की कमी महसूस नहीं होने दी। उनके अलावा विराट कोहली, युसूफ पठान, श्रीसंत, आर आश्विन और दूसरे खिलाडियों ने भी कहीं से निराश नहीं किया।
भारतीय टीम के युवाओं की यह जीत दिखाती है कि टीम अब पूरी तरह परिपक्व हो चुकी है। मुझे पिछले समय के दिन याद आते है। जब टीम पूरी तरह सचिन पर निर्भर हुआ करती थी। बाहर करते ही बल्लेबाजी धडाम हो जाया करती थी। अब टीम उस दुआर को काफी पीछे छोड़ चुकी है। यह ये दिखाता है कि हमारी युवा पीढ़ी कितनी मजबूत है। बढ़ो इंडिया वर्ल्ड कप जीत लो!
Sunday, December 5, 2010
Friday, December 3, 2010
'शूल' के बहाने
अभी कुछ दिन पहले फिल्म 'शूल' देख रहा था। एक दृश्य में समर प्रताप बने मनोज बाजपाई के ऊपर गुंडे हमला करते हैं, वह अपनी बेटी को बचने कि कोशिश करता है, मगर उसकी बेटी घायल हो जाती है। गुंडों को मजा चखाने के बाद जब समर होश संभालता है तो अपनी घायल बेटी कि मदद के लिए पुकारता है। सैकड़ों की भीड़ में से कोई भी सामने नहीं आता। यह देखकर मुझे और मेरे सात फिल्म देख रहे बंधू को गुस्सा आता है। खैर वहां तो सब स्क्रिप्ट के मुताबिक सब कुछ था। मगर ऐसी घटना अगर हकीकत में हो तब भी क्या जनता इतनी असंवेदनशील रहेगी? क्या भीड़ से कोई भी किसी समर प्रताप की मदद करने के लिए आगे नहीं आएगा? ये सवाल चुभते हुए हो सकते हैं मगर हैं जायज। ज़रा सोचियेगा?
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