दीपक की बातें

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Tuesday, March 29, 2011

आखिरी मुलाकात


इंडिया-पाकिस्तान के बीच मैच हो और सचिन तेंदुलकर-शोएब अख्तर राइवलरी की चर्चा ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता अपनी टीमों के लिए दोनों ही आइकान. अगर सचिन को इंडिया में क्रिकेट के गॉड का दर्जा हासिल है तो शोएब अख्तर भी पाकिस्तान में किसी स्टार से कम नहीं हैं. अब बुधवार को होने वाले वर्ल्ड कप सेमीफाइनल मैच में यह दोनों योद्धा आखिरी बार एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे. सचिन तेंदुलकर और शोएब अख्तर, एक रेकॉर्ड्स का बेताज बादशाह है तो दूसरा स्पीड का शहंशाह. क्रिकेट के मैदान पर दोनों की भिड़ंत के कई किस्से मशहूर हैं। जब-जब अख्तर ने जुबान से जंग का आगाज किया है, सचिन ने अपने बल्ले से जवाब दिया है. 2003 वर्ल्ड के दौरान सेंचुरियन के मैच को भूल सकता है भला. मैच से पहले शोएब अख्तर का बड़बोलापन और मैच में सचिन की धमाकेदार इनिंग्स. हिसाब चुकता और वर्ल्ड कप से पाकिस्तान का पत्ता साफ. यही सचिन का अंदाज रहा है. चुपचाप अपने विरोधी का कत्लेआम. कभी कलाई के सहारे शानदार फ्लिक, कभी घास छीलता कवर ड्राइव तो कभी बॉलर के पैरों के पास से निकलता स्ट्रेट ड्राइव. किसी मंझे हुए कलाकार की तरह वह अपनी इनिंग्स को एक मुकम्मल मुकाम तक पहुंचाते हैं. अपने करियर में सचिन ने सिर्फ रेकॉर्ड्स का पहाड़ ही नहीं खड़ा किया, बल्कि विरोधियों के दिलों में भी अपने लिए सम्मान पैदा किया. यहीं पर शोएब अख्तर पिछड़ जाते हैं. उनके टैलेंट, उनकी तेजी और विकेट टेकिंग एबिलिटी पर किसी को शक नहीं रहा है. जरा याद कीजिए, बाउंड्रीलाइन के करीब से लहराती जुल्फों और लयबद्ध एक्शन के साथ अख्तर का रनअप. करीब सौ मील की रफ्तार से बैट्समैन के कान करीब से सनसनाती हुई निकलती उनकी बॉल. फिर विकेट मिलने के बाद पक्षियों की तरह हाथ लहराते अख्तर का दौडऩा इस वर्ल्ड कप के बाद सिर्फ कैमरों में कैद होकर रह जाएगा. हालाँकि उनके करियर के कई निगेटिव प्वॉइंट्स भी रहे. उनकी तुनकमिजाजी, गुस्से और बदजुबानी ने वर्ल्ड क्रिकेट में उनके तमाम क्रिटिक पैदा कर दिए. यहां तक पाकिस्तान में भी उनके सपोर्टर्स का टोटा देखने को मिला है. टीम के साथियों से झगड़ा, डोपिंग का दाग, ड्रग्स का दंश हमेशा अख्तर का दामन दागदार करता रहा. इन सबके बावजूद हम तो यही कहेंगे, बहुत याद आओगे शोएब !


27 मार्च को i next के sunday issue में प्रकाशित

Wednesday, March 9, 2011

बीबीसी की याद में

बीबीसी, कई यादें जुडी हैं इस नाम के साथ। जब कल मुकुल सर के ज़रिये इस बात की जानकारी मिली कि बीबीसी हिंदी की एक सर्विस जारी रहेगी तो दिल को काफी तसल्ली मिली। हालाँकि संतोष तो तभी मिलेगा जब सभी सर्विस्सेस जारी होने की खुशखबरी मिलेगी।
खैर, जेहन में बीबीसी की कई बातें आज भी ताज़ा हैं। मैं छठी या सातवीं में पढता था। घर में बीबीसी खूब सुनी जाती थी। (अभी भी चाचा जी सुनते हैं ) शाम को साढ़े सात बजते ही रेडियो पर बीबीसी की सिंग्नेचर ट्यून बजती, और फिर आवाज आती, 'बीबीसी की तीसरी सभा में आपका स्वागत है, मैं मधुकर उपाध्याय, इस सभा .........पहले आप सुनिए अन्तराष्ट्रीय समाचार......और फिर जैसे ही समाचार ख़त्म होते, सिंग्नेचर ट्यून बजती और रेडियो से पहले मैं बोल उठता, 'आज कल' सच एक जूनून था। जैसे जैसे बड़ा होता गया ये जूनून एक मुकम्मल नशा बन गया। अचला शर्मा, रेहान फजल, ब्रजेश उपाध्याय, ममता गुप्ता, और भी कई नाम। मैं इन्हें सुनता और बाद में इनकी नक़ल करता। कहना गलत नहीं होगा कि पत्रकारिता में आने कि लगन यहीं से लगी....
ये तो बीते दिनों कि यादें है। अब तो कभी कभी ही बीबीसी सुन पता हूँ, मिस तो करता ही हूँ........