दीपक की बातें

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Sunday, January 15, 2012

यूं बिना लड़े हार जाना

जिस दीवार पर हमें नाज था वो आज पर्थ में गिर कई। वीवीएस लक्ष्मण की वेरी वेरी स्पेशल फॉर्म ना जाने कहां खो गई है। महेंद्र सिंह धोनी के जादू को जाने किसकी नजर लग गई है। जो टीम ऑस्ट्रेलिया में सिरीज जीतने के सपने के साथ पहुंची थी, उसे इस तरह बिखरते देखना दुखदाई है। उससे भी दुखदाई है टीम इंडिया के धुरंधरों का हार मान जाना। पर्थ में शून्य पर आउट होने के बाद लक्ष्मण का उदास होकर लौटना और द्रविड़ का सिर झुकाकर वापस आना देखना दिल को भारी कर गया। इन दोनों ने ना जाने कितने मौकों पर हमें गर्व से सिर उठाने का मौका दिया है। आज उनके चेहरे की उदासी और झुका हुआ सिर देखा नहीं गया। खासकर मेरे लिए और मेरे ही जैसे उन तमाम क्रिकेट प्रेमियों के लिए जिनकी सांसों में लिए क्रिकेट समाया हुआ है।

आउट होने को कौन बल्लेबाज आउट नहीं होता, मगर जिस तरह राहुल द्रविड़ हैरिस की गेंद पर लडख़ड़ाए वह शुभ संकेत नहीं है। गेंदबा उनकी तकनीक लगातार सेंध लगाते जा रहे हैं। एक के बाद एक द्रविड़ बोल्ड होते जा रहे हैं। लक्ष्मण जम नहीं पा रहे हैं, सहवाग धमाका नहीं कर पा रहे हैं। हार बुरी नहीं लगती, आत्मसमर्पण बुरा लगता है। और विदेश में पिछले सात टेस्ट मैचों से यह सिलसिला चल रहा है। यंू तो खेल में हार जीत लगी रहती है। खेलभावना भी यही कहती है कि हार का मातम नहीं मनाया जाना चाहिए, लेकिन गलतियों पर गौर करना ही होगा। अगर जीतने के बाद हमारी आरती उतारी जाती है, हार के बाद मर्सिया भी होगा।

हार के बाद कप्तान धोनी को गम मनाना भले ना गवारा हो, मगर आत्ममंथन तो करना ही पड़ेगा। इस सवाल का जवाब तो ढूंढना ही पड़ेगा कि आखिर क्या वजह रही कि जो टीम कुछ दिन पहले टेस्ट में नंबर वन थी, वह लुढ़कती जा रही है। विदेश में पहले भी मात मिली है, मगर पहले कभी इस तरह नंगा नहीं किया गया। कई बार हम जूझते हुए हारे, लेकिन इस बार तो जुझारूपन नाम की कोई चीज नहीं थी। यूं बिना लड़े हार जाना वीरों को शोभा नहीं देता।