दीपक की बातें

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Saturday, July 14, 2012

मौसम-ए-जुदाई में बरसात

मौसम-ए-जुदाई में जो बरसात हुई
भीगने हम भी जा पहुंचे छत पर लेकिन
स्वाद बूंदों का अबकी कुछ खारा सा लगा
तुम्हारे आंसू भी इसमें शामिल तो नहीं? 

पी गए हम इनको भी ग़म समझकर
भीगकर बैठे रहे बहुत देर तक ये सोचा
क्या पता इन बूंदों के बहाने
तुमने हमें सावन का कोई पैगाम भेजा हो







(ये पक्तियां भी लिखी गयीं) 

वो बाग़, वो शाख, वो गलियां सूनीं
तुम्हारे साथ जो कभी आबाद रहती थीं
अभी तो हम हैं और है ये तन्हाई
कहाँ कि बारिश, कौन सा बरसात का मौसम
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बरसते मौसम से ये गुज़ारिश मेरी
अबकी बरसे तो तरसता ना छोड़े
इतनी बूंदें आ जाएँ मेरे हिस्से में
कि हरा-भरा हो जाए विरह का मौसम

Monday, July 9, 2012

ज़िन्दगी में मौत

Courtesy: Google
कल ही किसी ने गोली मार दी
आधी रात को
लहू से लथपथ अपने जिस्म को लिए
मैं तड़पता रहा बहुत देर तक
तमाम हसीन परछाईयाँ गुजरी मेरी तरफ से
मगर हाथ में थीं उनके नंगी तलवारें
मदद नहीं मांगी मैंने
डर था,
जान बची है देखकर, वो मेरा गला रेत देंगी
मौत हर पल करीब आती जा रही थी
तभी अलार्म बजा और नींद खुल गयी
सुबह से सोच रहा हूँ
अभी ज़िन्दगी में कितनी मौत बाकी है

Sunday, July 1, 2012

आम का मौसम और तुम्हारी यादें

तस्वीर गूगल से साभार
वो पहली बारिश का सोंधापन
वो बाग़ में आमों का झुरमुट
पेड़ पर चढ़ना और डालियाँ हिलाना
फिर पूछना तुमसे,
क्या कोई पका आम गिरा है
कोई जवाब न मिलना
और तुम्हारा कच्चे आमों पर लट्टू होना
कच्ची उम्र की तमाम यादें
इंटर या बीए के साल की
जब पहली बार बेहाल हुए थे
हाँ-हाँ उसी साल की

बदलते मौसम में तुम्हारा मेरे गाँव आना
बरसती बूंदों सा मुझ पर छा जाना
और तुम्हारे जाते ही गाँव का मौसम बदल जाना
फिर अगले साल तक पहली बारिश का इंतज़ार
और पहली जून से ही मेरा बेचैन हो जाना
बीत चुके हैं बरसों तुम्हे आये मेरे गाँव में
पर यादों का मौसम आबाद है तुम्हारी यादों से
लगता है जैसे सब कल ही की तो बात है

कभी फुरसत निकालो, फिर आओ
मेरे गाँव का मौसम बदल जाओ
हमने भी कई आम के पेड़ लगाये हैं
उनकी शाखों पर झूमती तुम्हारी अदाएं है