दीपक की बातें

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Saturday, July 14, 2012

मौसम-ए-जुदाई में बरसात

मौसम-ए-जुदाई में जो बरसात हुई
भीगने हम भी जा पहुंचे छत पर लेकिन
स्वाद बूंदों का अबकी कुछ खारा सा लगा
तुम्हारे आंसू भी इसमें शामिल तो नहीं? 

पी गए हम इनको भी ग़म समझकर
भीगकर बैठे रहे बहुत देर तक ये सोचा
क्या पता इन बूंदों के बहाने
तुमने हमें सावन का कोई पैगाम भेजा हो







(ये पक्तियां भी लिखी गयीं) 

वो बाग़, वो शाख, वो गलियां सूनीं
तुम्हारे साथ जो कभी आबाद रहती थीं
अभी तो हम हैं और है ये तन्हाई
कहाँ कि बारिश, कौन सा बरसात का मौसम
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बरसते मौसम से ये गुज़ारिश मेरी
अबकी बरसे तो तरसता ना छोड़े
इतनी बूंदें आ जाएँ मेरे हिस्से में
कि हरा-भरा हो जाए विरह का मौसम

4 comments:

  1. प्रस्तुति मन को छू गई !

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  2. पी गए हम इनको भी ग़म समझकर
    भीगकर बैठे रहे बहुत देर तक ये सोचा
    क्या पता इन बूंदों के बहाने
    तुमने हमें सावन का कोई पैगाम भेजा हो
    .........रचना की जितनी तारीफ की जाय कम है.अद्भुत
    वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  3. बहुत बढ़िया भाव ||

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