दीपक की बातें

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Friday, November 30, 2012

'तलाश' नहीं करेगी निराश

हमने 'तलाश' कर ली। आप भी 'तलाश' कर लीजिए। दावा है कि निराश नहीं होंगे। आमिर ने फिर साबित किया कि वह क्यों मिस्टर परफेक्शनिस्ट हैं। अच्छी कहानी, अच्छी एक्टिंग, अच्छी सिनेमैटोग्राफी। ट्विस्ट्स और टर्न से भरपूर इस कहानी का एंड आपको हिलाकर रख देने की क्षमता रखता है। हां, बस बीच में फिल्म थोड़ी सी बोझिल जरूर हो जाती है। अगर रीमा कागती इसकी शुरुआती रफ़्तार कायम रखने में सफल होतीं तो यह और भी शानदार फिल्म होती। बहरहाल रीमा कागती का डायरेक्ट्रियल डेब्यू बढ़िया है। आमिर तो हैं ही बेमिसाल, बाकी रानी मुखर्जी, करीना कपूर, राजकुमार यादव भी अपने रोल में फिट हैं। हालांकि महफिल लूटी है, नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने। उन्होंने फिर साबित कर दिया है कि रोल की गहराई में डूबकर कैसे काम किया जाता है।
(मेरी तरफ से फिल्म को 4 स्टार)

Saturday, November 17, 2012

छल भरे सपने

कुछ छल भरे सपने
मेरी पलकों में आ जाते हैं
जिंदगी जीने की सच्‍ची-झूठी उम्‍मीद दे जाते हैं
मैं कई बार हैरान होता हूं
अपनी महत्‍वाकांक्षाओं पर
सफर के साथी जब छूटते नजर आते हैं
मुश्किलें, तन्‍हाइयां, बेचारगी, मजबूरियां
जिंदगी के इम्तिहान से मिले सबक जैसे याद आते हैं

Tuesday, November 6, 2012

मच्छर और आतंकी

कल रात मेरे हाथों एक मच्छर का कत्ल हो गया
हुआ यूं कि अखबार में था मेरा ध्यान
मच्छर आकर कान में देने लगा ज्ञान
मैंने अखबार लहराया,मच्छर उसकी चपेट में आया
और अखबार पर रक्त की बूंदें मेरे गुनाह का सुबूत थीं।
मुझे अफसोस हुआ! अचानक मुझे वो मच्छर याद आने लगा
जिसने काटा था आतंकी कसाब को
सोचा, कौन जाने ये वही मच्छर रहा हो
कसाब को काटने के बाद बहादुरी में इतरा रहा हो
जो देश की सरकार ना कर सकी
उसे अपनी वीरगाथा बता रहा हो।
फिर तो मच्छर के प्रति सहानुभूति उमड़ आई
मैंने अखबार पर नजर दौड़ाई
वहां खून की बूंदे देख तसल्ली हुई
वाह, देखो क्या मौत मरा है जवान
जाते—जाते अखबार पर छोड़ गया निशान।

Monday, November 5, 2012

तुम भी जलते रहो

तुम भी जलते रहो
मैं भी जलता रहूं,
सुबह-शाम बस यूं ही चलता रहूं
कुछ अदाएं तेरी
कुछ खताएं मेरी
तुमको देखा करूं, और मचलता रहूं
फासला कुछ रहे
फैसला कुछ रहे
सोचता कुछ रहूं, कुछ निखरता रहूं