दीपक की बातें

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Sunday, June 30, 2013

ज़िंदगी! इतनी मेहरबान तो नहीं।

कुछ ख्यालात से
दोबारा गुजर जाने का मन करता है
कुछ गीत, कविताएं, कहानियां
दोबारा सुनना चाहता है दिल
जिंदगी के तमाम लम्हों को
दोबारा जी लेने की कसक उठती है
कुछ यादों से बार—बार
रूबरू होने की तमन्ना होती है
मगर उफ ये ज़िंदगी!
इतनी मेहरबान तो नहीं।

Saturday, June 22, 2013

गुजर जाता हूं

गुजर जाता हूं बहुत जल्दी से तुम्हारी राह से
कि तुम फिर मिल न जाओ इसलिए कतराता हूं
तुमसे मिलने के लिए कितने बहाने करता था
तुम्हारी गली तक आने को बेकरार रहता था
एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार
और अनगिनत बार, जाने कितनी बार
मगर अब ये​ सिलसिला टूट चुका है
तुम तो वहीं हो, पर दिल अब रूठ चुका है
अब तो 10 किलोमीटर का अतिरिक्त फासला तय कर जाता हूं
सिर्फ तुम्हारी गली से बचने के लिए
जाने कहां—कहां से गुजर जाता हूं!