दीपक की बातें

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Saturday, July 13, 2013

घने बादलों से ढकी शाम में

ये घने बादलों से ढकी शाम
उदास गीत की किसी धुन की तरह
जी में आता है इसे गुनगुनाउं
जी में आता है इसे किसी को सुनाउं
एबी रोड पर चलते हुए
मैं रास्तों से बात करता हूं
देखता हूं आस—पास से गुजरते चेहरों को
कोई शरमाया सा, कोई मुरझाया सा
और कोई मेहनत की चमक से चमकता हुआ।
वो देखो एक बच्चा मां की गोद में सिमटा
बाप चला रहा गाड़ी है
वो देखो महबूबा शर्माई,
आशिक ने छेड़ दिया हो जैसे
फैशन से लकदक दुनिया भी
गुलजार हो रही है सड़क पर
एक और दुनिया भी है यहीं
इस मॉल के सामने
जिसके हाथों में बस
आज पेट भर पाने की कमाई है
ये किसी एक शहर की नहीं, हर शहर की कहानी है
इसमें कुछ किस्से नए हैं
कुछ दास्तानें पुरानी हैं।

Tuesday, July 9, 2013

तुम, मैं और उदासी

कोई कविता नहीं
कोई ग़ज़ल नहीं
तुम्हारे सिवा
जिंदगी में कोई पल नहीं

फिर ये उदासी
क्यों है तारी सी
जेहन पर छाई
एक खुमारी सी

तुमसे बात कर लूं तो
शायद थोड़ा सुकून आए
मगर कर नहीं पाता
तुम्हारा ख्याल रखता हूं!

मुझे पता है, तुम्हें भी
शायद मालूम होगा
ये उलझनें क्यूं हैं
क्यूं मुझे सुकून नहीं!

सोचता हूं तुम्हें बता दूं
फिर सोचता हूं तुम क्या सोचोगी
सोचता हूं तुम खुद समझ जाओ
​फिर सोचता हूं चलो ऐसे ही सही!

Wednesday, July 3, 2013

मेरे लिए तुम सपने ही हो

लाखों बार—बार तसल्ली मांगी
बार—बार अधिकार जताया
खुद की कितनी कसमें खायीं
और खुदा को याद दिलाया
पर इतना सा ना मैं समझा
आखिर तुम तो अपने ही हो
हां, मैं सपना देख रहा हूं
मेरे लिए तुम सपने ही हो