दीपक की बातें

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Monday, September 9, 2013

नए प्रतीक गढ़ती शुद्ध देसी रोमांस

शुद्ध देसी रोमांस निश्चित तौर नए फ्लेवर की फिल्म है। रघु, गायत्री और तारा की कहानी हमारे ही आसपास से प्रेरित है। इसके साथ ही फिल्म में जिस तरह से कुछ शानदार प्रतीकों का इस्तेमाल हुआ है वह भी काफी अच्छा है।

खासतौर पर बाथरूम का। असल में इस फिल्म में बाथरूम को एक कैरेक्टर के तौर पर पेश किया गया है। रघु जब पहली बार शादी से भागता है तो बाथरूम का बहाना बनाकर भागता है। इसके बाद कई सीन में बाथरूम भागने का सहारा बना है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बाथरूम को ऐसे ही दिखा दिया गया है। फिल्म देखते हुए गौर कीजिए, बाथरूम पर कुछ न कुछ लिखा है। इसके जरिए निर्देशक ने एक नई प्रतीकात्मकता का इजाद किया है। इसके अलावा टेंशन के वक्त में जब रघु गायत्री की नब्ज टटोलता है, वह भी प्रतीकात्मकता का बेहतर उदाहरण है। खासतौर पर रोमांस की प्रतीकात्मकता का

आज बहुत से युवा हैं, जो जिंदगी को एंज्वॉय करना चाहते हैं, लेकिन शर्तों में बंधकर नहीं। गर्लफ्रेंड चाहिए, उसके साथ सेक्स संबंध भी चाहिए, लेकिन जहां शादी करने की बात आती है, जिम्मेदारी उठाने की बात आती है, वह कट लेता है।

बड़े शहरों में ही नहीं, छोटे शहरों में भी ऐसे किस्से खूब सुनने को मिल जाएंगे। जहां लड़के एक नहीं, दो—दो, तीन—तीन गर्लु्फ्रेंड रखते हैं, लेकिन शादी किसी ने नहीं करना चाहते। हो सकता है कि बहुत से लोगों को यह स्टोरी हजम न हो, लेकिन समाज की एक सच्चाई ​तो दिखाती ही है शुद्ध देसी रोमांस।

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