दीपक की बातें

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Sunday, December 22, 2013

धूम 3 माइनस आमिर खान = 0

चार स्टार
धूम सिरीज की नई पेशकश धूम-३ में सबसे बड़ा सरप्राइज पैकेज हैं आमिर खान। फिल्म की कहानी इस बार शिकागो में सेट की गई है। इकबाल खान (जैकी श्रॉफ) अपने सर्कस को बचाने के लिए जूझ रहे हैं। उन्होंने बैंक से लोन ले रखा है, लेकिन बैंक वाले मोहलत देने को तैयार नहीं हैं। सर्कस डूब जाता है और इस गम में इकबाल खान अपनी जान दे देते हैं। उस वक्त इकबाल का बेटा साहिर (आमिर खान) भी वहां मौजूद होता है। बड़ा होकर बैंक से बदला लेने के लिए साहिर उसमें कई बार चोरियां करता है। हर चोरी के बाद वह हिंदी में एक संदेश भी छोड़कर जाता है। मामले को हल करने के लिए शिकागो पुलिस भारतीय पुलिस के दो जांबाजों जय दीक्षित (अभिषेक बच्चन) और अली (उदय चोपड़ा) को बुलाती है। उधर साहिर अपने पिता के सर्कस को भी फिर से खड़ा करता है और उसके साथ आलिया (कटरीना कैफ) भी काम करने लगती है।

स्क्रीनप्ले और निर्देशन
फिल्म की कहानी में नयापन है। इसमें ढेर सारा ट्विस्ट है जो दर्शकों को बांधे रखता है। शुरुआती सीन से ही फिल्म जबर्दस्त है। फ्लैशबैक और वर्तमान की कहानी में अच्छा तालमेल बनाया गया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि फिल्म में कमियां नहीं हैं। लॉजिक की कसौटी पर कसेंगे तो ऐसी सैकड़ों कमियां नजर आएंगी। कुछ दृश्य गैरजरूरी मालूम पड़ते हैं। खासतौर पर अभिषेक बच्चन की एंट्री वाला सीन। इसके अलावा कुछ दृश्यों में अतिरेकता का सहारा लिया गया है। बहरहाल, ड्रामा, सस्पेंस और बाइक चेजिंग के कई सीक्वेंस दर्शकों को रोमांचित करते हैं। लोकेशन और विजुअल इफेक्ट्स भी बहुत शानदार हैं।

अभिनय
आमिर खान ने फिल्म में पूरी तरह से चौंकाया है। एक्शन और स्टंट करते हुए वह काफी जमे हैं। इसके अलावा भावनात्मक दृश्यों में भी उन्होंने अपनी अदाकारी का जादू चलाया है। कटरीना कैफ खूबसूरत लगी हैं। बाकी उनके पास ज्यादा कुछ करने के लिए था ही नहीं। वहीं अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा वही करते रहते हैं जो धूम सिरीज की पिछली दो फिल्मों में कर रहे थे।

गीत-संगीत
फिल्म का गीत-संगीत बहुत दमदार तो नहीं है, लेकिन गानों की पिक्चराइजेशन अच्छी है। गानों की कोरियोग्राफी भी काफी अच्छी की गई है। कमली-कमली और मलंग बाकी गानों की तुलना में बेहतर हैं।

फाइनल पंच
धूम-3 के साथ दर्शक साल का अंत धूम-धाम से कर सकते हैं। फैमिली एंटरनेटमेंट की कसौटी पर भी यह खरी उतरती है। 

Sunday, December 15, 2013

कुछ नहीं है सनी लियोनी के 'जैकपॉट' में

1 स्टार
फिल्म 'जैकपॉट' पहले ही घंटे में फिल्म इतना पकाती है कि कई दर्शक सिनेमाहॉल छोड़कर निकल जाते हैं। अफसोस, अपन तो यह भी नहीं कर सकते थे, वर्ना यह यह रिव्यू कौन लिखता? फिल्म देखते हुए लगता है निर्देशक कैजाद गुस्ताद यह भूल गए थे कि मनोरंजन नाम की भी कोई चीज होती है। थ्रिलर और सस्पेंस फिल्म होने का दावा करने वाली जैकपॉट किसी धारावाहिक का नीरस एपिसोड लगता है, बल्कि वह भी इससे ज्यादा मनोरंजक हो सकता है।
फिल्म की कहानी है बॉस (नसीरुद्दीन शाह) की। वह गोवा में एक कसीनो का मालिक है। बॉस फ्रांसिस (सचिन जोशी), माया (सनी लियोनी), एंथनी (भरत निवास) और कीर्ति (एल्विस) के साथ अपने ही कसीनो में गलत ढंग से पांच करोड़ रुपए का जैकपॉट जीते की साजिश रचता है। बाद में इसी साजिश में साजिशों का सिलसिला चल पड़ता है और सब एक-दूसरे पर शक करने लगते हैं।


निर्देशक और लेखक कैजाद गुस्ताद ने क्या सोचकर यह फिल्म बनाई, कुछ समझ में नहीं आता। शुरू से ही फिल्म में झोल ही झोल हैं। स्क्रिप्ट इतनी उलझी हुई है कि दर्शक लगातार कंफ्यूज रहते हैं। समझ में ही नहीं आता कि कहानी किस दिशा में जा रही है। फिल्म में इतने ज्यादा फ्लैशबैक हैं कि दर्शक फिल्म से जुड़ ही नहीं पाता। कोई भी प्लॉट दर्शकों को न तो चौंका पाता है और न ही हैरान करता है।


फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है। यह लालच, धोखाधड़ी और दोस्ती में दगाबाजी के पुराने फॉर्मूलों पर आधारित है। इस तरह की कहानी पर हम जाने कितनी फिल्में देख चुके हैं।


फिल्म में थोड़ा बहुत जो अभिनय नजर आता है, वह नसीरुद््दीन शाह की बदौलत है। बाकी सनी लियोनी क्यों बॉलीवुड फिल्मों में आ गईं, ये तो वही जानें। उनसे अभिनय की कोई उम्मीद नहीं थी और वह कोई उम्मीद जगाती भी नहीं। हां, जिस्म की नुमाइश में कसर बाकी नहीं रखतीं। सचिन जोशी और अन्य कलाकार भी कुछ खास नहीं कर पाए हैं।


फिल्म का यही एक पक्ष है जो थोड़ा बेहतर है। खासतौर पर अरिजीत सिंह की आवाज में कभी जो बादल बरसे गाना कानों को सुकून दे जाता है।


अगर आप यह सोचकर जा रहे हैं कि आपके हाथ कोई बड़ा जैकपॉट लगेगा, तो बिल्कुल मत जाइए। हां, सनी लियोनी के बहुत बड़े फैन हैं तो शौक से जाइए।

Friday, December 13, 2013

धत तेरी की गाने वाला 'सनम'

एसक्यूएस प्रोजेक्ट बैंड के बाद गोरी तेरे प्यार से बॉलीवुड में अपनी आवाज पहुंचा रहे हैं गायक सनम पुरी

इन दिनों फिल्म 'गोरी तेरे प्यार में' का गाना 'धत तेरी की' युवाओं को खासा लुभा रहा है। इसे आवाज दी है सनम पुरी ने। सनम का नाम अभी तक उनके बैंड 'एसक्यूएस प्रोजेक्ट'  और अलबमों 'एसक्यूएस सुपरस्टार' और 'समर सनम' के लिए जाना जाता है। अब 'धत तेरी की' के साथ सनम ने बॉलीवुड की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। सनम से बात करना काफी मजेदार रहा। वह बिल्कुल हंसते-मुस्कुराते हुए बातें करते हैं और बेलौस अंदाज में जवाब देते हैं। पेश हैं सनम के साथ टेलीफोन पर हुई लंबी बातचीत के कुछ अंश...

- 'धत तेरी की' गाना कैसे मिला?
- हमारे मैनेजर हैं बेन थॉमस। उन्होंने विशाल-शेखर के लिए हमारे अलबम एसक्यूएस सुपरस्टार का गाना तेरी आंखों से प्

- बैंड से बॉलीवुड तक का सफर कैसा रहा?
- काफी अच्छा सफर रहा। करीब ३ साल पहले हमारा पहला अलबम आया था। तब से अब तक काफी अच्छा रहा है सबकुछ।

- बतौर गायक कहां कंफर्टेबल पाते हैं खुद को, बैंड में या बॉलीवुड में?
- निश्चित तौर पर बैंड में। यहां हमारे पास पूरी आजादी होती है। गाने में हेरफेर करने या फिर ट्यून में बदलाव और उसका अंदाज तय करने में। बॉलीवुड में ऐसा होना मुश्किल है, क्योंकि वहां हम किसी के अंडर में काम कर रहे होते हैं। जो फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को पसंद आता है बस उसी के मुताबिक काम करना पड़ता है।

- किसी सिंगर के लिए फिल्मों में गाना क्यों जरूरी हो गया है?
- जरूरी तो नहीं, लेकिन इसे जरूरी बना दिया गया है। नाम, पहचान, शोहरत सब फिल्मों में गाने के बाद ही मिलती है। इसलिए लोग एक या दो अलबम निकालने के बाद फिल्मों में काम की तलाश में लग जाते हैं।

- अगर फिल्मों में काम मिलने लगेगा तो क्या बैंड बंद कर देंगे?
-बिल्कुल नहीं। फिल्मों में काम तो पता नहीं कितना और कब तक मिलेगा, लेकिन बैंड तो जिंदगी भर साथ देगा।

- तो क्या यह शुरू से तय था कि म्यूजिक की ही फील्ड में जाना है?
- बिल्कुल! मैं पैदा ही इसीके लिए हुआ हूं। छह साल की उम्र से ही गाने लगा था।

-आपके लिए म्यूजिक क्या है?
म्यूजिक से मुझे पैसा और शोहरत नहीं कमानी है। म्यूजिक से मुझे लोगों को खुश करना है।

- कौन से सिंगर्स पसंद हैं?
- सभी सिंगर्स को सुनना अच्छा लगता है। आखिर सभी मेहनत करते हैं, तो हमें सभी का सम्मान करना चाहिए।

- कभी किसी से इंस्पायर हुए?
- नहीं, कभी नहीं। मेरी इंस्पिरेशन मेरा भाई समर ही है। असल में मैं गाने ज्यादा सुनता नहीं हूं। इसके बजाए मैं ऑर्केस्ट्रा म्यूजिक सुनना पसंद करता हूं।

- आपके भाई समर आपसे छोटे हैं या बड़े?
- समर मुझसे दो साल बड़े हैं।

-दोनों के बीच क्या काम बंटा हुआ है?
-नहीं, ऐसा कुछ नहीं। आपस में डिस्कस करते रहते हैं। बस उनकी लिखने पर पकड़ थोड़ी अच्छी है तो वे गाने लिखते हैं। बाद में मैं उसकी धुन तैयार करता हूं।

- आगे क्या करने का इरादा है?
- बहुत कुछ करना है। गाना तो चलता ही रहेगा, साथ ही फिल्मों में म्यूजिक भी देना है। एेक्टिंग के बारे में भी सोचा है, लेकिन पहली प्रियॉरिटी म्यूजिक ही रहेगी।
ले किया। इसे सुनने के बाद विशाल-शेखर ने मुझे मिलने के लिए बुलाया। हमने उनके सामने कुछ गाने गुनगुनाए। यह विशाल-शेखर को काफी पसंद आ गए और उन्होंने तय किया कि हम लोग साथ काम करेंगे। इस तरह यह गाना मुझे मिला।

Saturday, December 7, 2013

प्रभुदेवा का रद्दी राजकुमार!

दो स्टार
प्रभुदेवा ने वॉन्टेड फिल्म के साथ बॉलीवुड में साउथ का तड़का लगाने की शुरुआत की। अब इसी अंदाज को वह एक बार फिर लेकर आए हैं फिल्म 'र... राजकुमार' के साथ। अब उन्हें कौन समझाए कि एक ही मसाला बार-बार परोसोगे तो ओवरडोज हो जाएगी।

फिल्म में शाहिद कपूर बने हैं रोमियो राजकुमार। राजकुमार किसी अंधेरी रात में एक गांव में पहुंच जाता है। वहां शिवराज (सोनू सूद) और परमार (आशीष विद्यार्थी) की दुश्मनी के चलते हालात बहुत खराब हैं। यहां पर राजकुमार को चंदा (सोनाक्षी सिन्हा) से प्यार हो जाता है। वहीं शिवराज भी चंदा को चाहता है। चंदा का प्यार पाने के लिए राजकुमार को क्या-क्या करना पड़ता है, यही फिल्म में दिखाया गया है।

प्रभुदेवा के स्टाइल में कुछ भी नया नहीं है। वही तीखा मसाला, तगड़ा एक्शन और कानफोड़ू संगीत। इन सबके चक्कर में कहानी की जमकर बैंड बजी है। फिल्म में गाने भी इतने ज्यादा हैं कि बची-खुची कहानी का भी दम घोंट जाते हैं।
साफ नजर आने लगा है कि प्रभुदेवा अपने ही फॉर्मूले के शिकार हो गए हैं। साउथ के स्टाइल में फिल्म को पेश करने के उनके अंदाज से अब दर्शक उकताने लगे हैं। शुरू के कुछ दृश्य जरूर फनी हैं, लेकिन इतने नहीं कि उनके लिए पूरी फिल्म देखी जाए। शाहिद का बार-बार किस के लिए मुंह बनाना भी इरिटेट करने लगता था। लॉजिक या दिमाग लगाने की बिल्कुल जरूरत नहीं। आलम यह है कि हीरो सिर्फ पैर हिलाता है और आठ-दस विलेन एक साथ हवा में उड़ जाते हैं। वहीं अकेले 60-65 लोगों को शाहिद को मारते देखना भी हजम नहीं होता।

जहां तक अभिनय की बात है तो यही एक चीज है जो फिल्म में नजर आती है। चाहे वह शाहिद कपूर हों या फिर सोनू सूद और आशीष विद्यार्थी, सभी ने अपनी तरफ से बेहतरीन कोशिश की है। कुछ दृश्यों में शाहिद ने इतना अच्छा अभिनय किया है कि उन्हें दाद देने को दिल करता है। हालांकि सोनाक्षी सिन्हा इसमें काफी पिछड़ी हुई हैं। सोनाक्षी को अब अपने अभिनय को कुछ नए रंग देने होंगे, अन्यथा लोग लुटेरा में उनके बेहतरीन काम को तुक्का ही मानेंगे। डायलॉग्स में भी कुछ नया नहीं है। हां, मध्य प्रदेश और गुजरात की लोकेशन को जरूर कैमरे ने अच्छे से कैद किया है।

इस फिल्म से भी काफी उम्मीदें थीं। खासतौर पर शाहिद कपूर और सोनाक्षी दोनों ने इसके जरिए अपने करियर में नई उछाल की संभावनाएं देखी होंगी, लेकिन अफसोस कि सभी को नाउम्मीद होना पड़ता है। फिल्म में हिंसा के दृश्य भी काफी ज्यादा हैं।