दीपक की बातें

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Sunday, February 23, 2014

आलिया का अलग ढंग का 'हाईवे'!

तीन स्टार
इम्तियाज अली अलग तरह की फिल्में बनाते हैं। दुनिया के बंधे-बंधाए कायदों से बगावत उनकी फिल्मों में साफ झलकती है। ऐसा ही कुछ असर हाइवे फिल्म में भी नजर आता है।
इस फिल्म में वीरा (आलिया भट्ट) की शादी होने वाली है। शादी से से ठीक एक दिन पहले ही महाबीर भाटी (रणदीप हुडा) उसको अगवा कर लेता है।

शुरू में वीरा बहुत डरी सहमी सी रहती है। जैसे ही उसे अहसास होता है कि महाबीर उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा तो वह खुलने लगती है। असल में अमीर मां-बाप के घर रहते हुए वीरा कभी खुद को आजाद नहीं महसूस कर पाती। जबकि अपहरण होने के बावजूद महाबीर के साथ वह एक खुलापन सा पाती है। एक दिन वीरा बचपन का अपना दर्द महाबीर को बताती है और यहीं से दोनों के बीच एक अनजान बॉन्डिंग बन जाती है।

इम्तियाज ने फिल्म को नए ढंग से ट्रीट करने की कोशिश की है। सबसे खास बात है कि इम्तियाज ने अपने अभिनेताओं से अच्छा काम लिया है। महाबीर भाटी के रूप में रणदीप हुडा ने चौंकाने की हद तक बढि़या काम किया है। साहब, बीवी और गैंगस्टर के बाद एक्टिंग के लिहाज से यह उनकी दूसरी यादगार फिल्म है।

वहीं आलिया भट्ट की मासूमियत और चंचलता भी अच्छी लगती हैं। सिर्फ एक फिल्म पुरानी आलिया ने अच्छी वैरिएशन दिखाई है।
हालांकि इम्तियाज की कमियां यह हैं कि वीरा के अपहरण के काफी देर बाद तक वह उसके घरवालों का हाल नहीं दिखाते। साथ ही वीरा और महाबीर का अचानक करीब आना और वीरा अपने घरवालों के खिलाफ एकदम भड़क जाना थोड़ा अजीब लगता है।

फिल्म की गति थोड़ी धीमी है और इस वजह से सीमित दर्शकों को ही पसंद आएगी। इंटरवल से पहले फिल्म ज्यादा मनोरंजक है। दूसरे हॉफ में यह थोड़ी सी गड़बड़ा गई है। वहीं एआर रहमान का संगीत उम्मीदों से कमतर है।

हालांकि ओवरऑल फिल्म को देखें तो यह काफी रोचक अनुभव है। पूरी फिल्म में जबर्दस्त और अनदेखी लोकेशंस हैं। सिनेमैटोग्राफी थोड़ा निराश करती है। अगर इस फिल्म को और बेहतर ढंग से शूट किया गया होता तो यह और लाजवाब होती। इसके बावजूद फिल्म को देखना अलग अनुभव है। खासकर घूमने-फिरने के शौकीनों को पसंद आएगी।

दूसरी खास बात है कि फिल्म में यौन शोषण का पक्ष भी रखा गया है। अपने ही परिवार में एक रिश्तेदार के हाथों में शोषण को सहन करती बच्ची की कोई नहीं सुनता। बाद में बड़ी होकर वह इसके खिलाफ बगावत कर देती है। इस दर्द को आलिया ने पर्दे पर बहुत खूबसूरती से जिया है। वहीं निचले तबके से ताल्लुक रखने वाला महाबीर भाटी भी इसी दर्द से जूझ रहा है।

आलिया भट्ट की मासूमियत, रणदीप हुडा के काम और इम्तियाज अली के नाम पर फिल्म को एक बार देखा जा सकता है।

Saturday, February 8, 2014

हरकतें हंसाएंगी और अदाएं फंसाएंगी

3.5 स्टार
शादी का माहौल, पंजाबी गाना, प्यार, इश्क, मोहब्बत और हंसाती-गुदगुदाती कहानी। करण जौहर का पूरा मसाला मौजूद है 'हंसी तो फंसी' में। निखिल (सिद्धार्थ मल्होत्रा) एक मस्तमौला लड़का है। वह आईपीएस अफसर एसबी भारद्वाज (शरत सक्सेना) का बेटा है। एकदिन वह घर में बिना बताए अपने एक दोस्त की शादी में पहुंच जाता है, जहां उसे करिश्मा (अदा शर्मा) से प्यार हो जाता है। यहीं उसकी मुलाकात एक और लड़की से होती है जो अपना घर छोड़कर भाग रही होती है। बहरहाल सात साल के खट्टे-मीठे अफेयर के बाद निखिल और करिश्मा शादी करने का फैसला करते हैं। दोनों का शादी समारोह शुरू होने पर करिश्मा की बहन मीता (परिणीति चोपड़ा) अचानक आती है। यही वो लड़की है जो निखिल से मुंबई में मिली थी। मीता असल में एक साइंटिस्ट है, लेकिन कुछ मानसिक समस्याओं से परेशान है। अब इन तीनों की यह कहानी कैसे आगे बढ़ती है इसके लिए आपको सिनेमाहॉल तक जाना होगा।


हर्षवर्धन कुलकर्णी की कहानी और स्क्रीनप्ले काफी दिलचस्प हैं। फिल्म में शॉकिंग एलीमेंट्स हैं और आप आसानी से कहानी में आने वाले मोड़ का अंदाजा नहीं लगा पाते। फिल्म के पहले हिस्से में कहानी को जमाने की कोशिश की गई है। इंटरवल के बाद जब कहानी आगे बढ़ती है तो दर्शकों का जुड़ाव भी बढऩे लगता है। खासकर मीता के किरदार के गुत्थियां सुलझने के बाद दर्शक उसे पसंद करने लगते हैं।


यह सिद्धार्थ मल्होत्रा की दूसरी फिल्म है और इसमें उनकी मेहनत साफ नजर आती है। स्क्रीन पर वह काफी प्रजेंटेबल लगे हैं। वहीं परिणीति चोपड़ा का काम वाकई तारीफ के काबिल है। उन्होंने मीता के किरदार में अपने अभिनय की नई रेंज सामने रखी है। अदा शर्मा को स्कोप कम मिला है, लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से अच्छी कोशिश की है। बाकी किरदारों में शरत सक्सेना और मनोज जोशी का अभिनय अच्छा है।


बतौर निर्देशक पहली फिल्म में विनिल मैथ्यू ने अच्छा काम किया है। एक पेचीदा कहानी को उन्होंने उलझावों से बचाकर रखा। जहां तक संगीत की बात है तो विशाल-शेखर का संगीत अच्छा है, लेकिन न तो नयापन है न ही गानों में दम है।


ओवरऑल देखें तो हंसी तो फंसी एक मनोरंजक फिल्म है। इसे देखते हुए आप कतई बोर नहीं होते। खासकर वन लाइनर डायलॉग्स काफी फनी हैं। सिंगल स्क्रीन की तुलना में मल्टीप्लेक्स के युवा दर्शक इसे पसंद करेंगे।