दीपक की बातें

Hindi Blogs Directory

Saturday, April 5, 2014

माइंडलेस, लेकिन मनोरंजक है 'मैं तेरा हीरो'

तीन स्टार
'मैं तेरा हीरो' फिल्म देखते हुए आपको अब तक की बहुत सारी फिल्में याद आएंगी। खासकर 90 के दशक में देखी हुई डेविड धवन और गोविंदा की फिल्में। उस वक्त के कॉमेडी किंग कहे गए डेविड धवन ने वही सारे मसाले आजमाए हैं, जो उन्होंने कभी गोविंदा और सलमान के साथ आजमाए थे। अपने बेटे को इंडस्ट्री में जमाने के लिए उन्होंने बिल्कुल सेफ गेम खेला है।

फिल्म की कहानी है सीनू (वरुण धवन) की, जिसका असली नाम है श्रीनाथ प्रसाद। वह ऊटी का रहने वाला है और उसके शहर में उससे हर कोई तंग है। यही कारण है कि जब वह अपना शहर छोड़कर बेंगलुरू जाता है तो पूरा शहर उसे छोडऩे स्टेशन पर आ जाता है। बेंगलुरू में सीनू कॉलेज का दिल एक लड़की सुनयना (इलियाना डिक्रूज) पर आ जाता है। मुश्किल यह है कि सुनयना को एक गुस्सैल पुलिसवाला अंगद (अरुणोदय सिंह) भी पसंद करता है। वहीं अंडरवल्र्ड डॉन विक्रम (अनुपम खेर) की बेटी आयशा (नरगिस फाखरी) को सीनू से एकतरफा प्यार हो जाता है और वह सुनयना का अपहरण करवा लेती है। किसे अपना प्यार मिलेगा, यही फिल्म की कहानी है।

टिपिकल डेविड धवन फॉर्मूला
टिपिकल डेविड धवन फॉर्मूला फिल्म। कुछ भी नया नहीं है। सबकुछ देखा सुना हुआ है। 90 के दशक में इन्हीं फॉर्मूलों के दम पर डेविड धवन ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी एक अलग पहचान बना रखी थी। एक बार फिर से उन्होंने वही सब आजमाया है। चिकना-चुपड़ा हीरो है, जो गुंडों की पिटाई भी कर सकता है और किसी से भी पंगा ले सकता है। सिर्फ यही नहीं, वह भगवान से बात भी कर सकता है और भगवान उसका जवाब भी देते हैं। इसके अलावा आधे कपड़ों में लिपटी दो खूबसूरत हिरोइनें हैं, जिन्हें देखकर भ्रम होता है कि कहीं कुपोषण के चलते उनकी हड्डियां तो नहीं निकल आईं? साथ में आज का जरूरी फैशन डबल मीनिंग डायलॉग्स तो हैं ही।

दिमाग न लगाना
इस फिल्म का हीरो ऐसे कॉलेज में पढ़ता है, जहां कभी क्लास चलती ही नहीं। पास न होने पर वह अपने ही प्रोफेसर की बेटी का अपहरण कर लेता है और वह भी शादी के दिन। फिल्म में एक पुलिसवाला भी है जिसने अपने गुंडे पाल रखे हैं और जिसका एकमात्र काम उस लड़की के साथ इश्क लड़ाना है, जिसपर उसका दिल आ गया है। इसके अलावा एक बहुत बड़ा अंडरवल्र्ड डॉन भी है, जिसके घर में ढेरों गुंडे होने के बावजूद, वह खुद ही रात में घर से भागे अपने दामाद को ढूंढता है।

प्लस प्वॉइंट
फिल्म का प्लस प्वॉइंट है, इसका बोझिल न होना। यह एंटरटेन करती है। अभिनय के मामले में वरुण धवन ने अपना सिक्का चलाया है। अपनी पहली फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' में उन्होंने संभावनाएं जगाई थीं और उन्हें वह यहां आगे बढ़ाते हैं। डांस और एक्शन से लेकर कॉमेडी तक में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। इसके अलावा सौरभ शुक्ला ने भी अच्छा काम किया है। डॉन के भाई के रूप में अपनी हरकतों से वह लगातार हंसाते रहते हैं। यही वजह है कि पहले भाग की तुलना में दूसरा भाग ज्यादा मनोरंजक है। अनुपम खेर, राजपाल यादव और अरुणोदय सिंह भी अपनी भूमिकाओं में फिट हैं। फिल्म के गाने अच्छे हैं। खासतौर पर गलत बात है, शनिवारी रात और पलट।

फाइनल पंच
'मैं तेरा हीरो' आपको पसंद आएगी, लेकिन शर्त है कि आप दिमाग घर पर छोड़कर जाएं। वैसे दिमाग से देखने के लिए सिनेमाघरों में 'कैप्टन अमेरिका' और 'जल' भी चल रही हैं।

No comments:

Post a Comment