मालिक तुम्हारे इस दीये में तेल अभी बाकी है, अंधकार को फाड़ने को मैं अभी और जलूँगा।
दीपक की बातें
Sunday, April 27, 2014
जली हुई कविताएं...
जली हुई डायरी के पन्नों में हर्फ़ अब भी नज़र आ रहे थे सारे समेटकर फिर से उन कविताओं को बुन देना चाहता था मगर मेरे हाथ आती सिर्फ कालिख! कालिख से लिखी थी और सिर्फ कालिख ही बची! जैसे जिंदगी जलकर कालिख हो जाए!
मर्मस्पर्शी ....बहुत गहरी पंक्तियाँ
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