दीपक की बातें

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Tuesday, October 28, 2014

किंग खान की फिल्म और दर्द—ए—दर्शक

जब आप फिल्म देखने जाते हैं तो सिर्फ फिल्म नहीं देखते। आपके आस—पास भी ढेरों शो चल रहे होते हैं। 24 अक्टूबर को जब मैं शाहरुख खान की नई फिल्म हैप्पी न्यू ईयर देखने पहुंचा तो मुझे कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। पढ़िए पूरा अनुभव... 

  • 3.40 का शो देखने के लिए 2 बजे घर से निकला। 
  • टिकट खिड़की पर वो लंबी लाइन। लगा कि अब तो 4.30 के शो का टिकट भी नहीं मिलेगा। 
  • कान और ध्यान पूरी तरह केबिन के अंदर बैठी मोहतरमा की स्पीकर से छन—छन करके आती घन—घन आवाज पर 
  • जी सर, नहीं सर, 3.40 का शो तो हाउसफुल हो चुका है।
  • दिल बैठा जा रहा है, यार! घर पर बोल के आया हूं कि 3.40 का शो है। 7 बजे तक घर आ जाउंगा। अब क्या होगा
  • बगल वाली विंडो पर एक भइया अगले दिन के लिए टिकट बुक करा रहे हैं। सुबह से लेकर शाम तक पूरा शिड्यूल पूछ डाला। पीछे वाले परेशान हैं। यार, हमें आज का तो मिल नहीं रहा। अंकल कल के चक्कर में हमारा टाइम भी वेस्ट कर रहे हैं
  • आस—पास युवक—युवतियों, गर्लफ्रेंड—ब्यॉफ्रेंड, पति—पत्नी, परिवार—बेपरिवार, फैशनेबल—अनफैशनेबल। टिप—टॉप, टाइप के काफी लोग जमा हुए हैं।
  • खुसर—पुसर का दौर है, ठहाके हैं। मेकअप से सजे चेहरे मेकअप का बाकायदा ध्यान रखते हुए मुस्कुराहट बिखेर रहे हैं। 
  • मुस्कुराहट कई बार, तय लक्ष्य के परे तक पहुंच रही है और बहुत से भाई लोग इन मुस्कुराहटों को लपकने के लिए भी प्रयत्नशील दिखाई दे रहे हैं। 
  • इन नजरों और नजारों को देखा—अनदेखा करते हुए टिकट खिड़की तक पहुंचता हूं। 
  • 1 टिकट हैप्पी न्यू ईयर का। देखिए अगर 3.40 के शो में मिल जाए तो...। 
  • सर एक मिनट, मोहतरमा की आवाज गूंजी। तभी मुस्कुराईं, मैंने बाईं ओर देखा, स्टाफ का कोई बंदा खड़ा है। तेरे को बोली मैं तभी ले जाने को। बोल कितने टिकट। 
  • मैं हैरान भी हूं और परेशान भी। यार कुछ टिकट जरूर बचे होंगे, अब इसने स्टाफ को थमा दिया। 
  • खैर, वो फुरसत हुई। हां, सर! 3.40 शो की एक टिकट प्लीज। एक मिनट सर देखती हूं। 
  • हां सर, मिल जाएगा। टॉप से सिक्स्थ रो। 
  • हां, दे दीजिए। 
  • थोड़ा सुकून मिला। अब घर समय पर पहुंच जाउंगा। 
  • टिकट लेकर तीसरी मंजिल पर बने थिएटर तक पहुंचे। भीड़ काफी है। लोग पहुंच रहे हैं। 
  • बाहर लगे पोस्टरों को देखकर दो लड़के आपस में बात कर रहे हैं— यार, 8 पैक ऐब्स बहुत बढ़िया नहीं दिख रहे हैं।
  • दूसरा कह रहा है, अबे बुढ़ा भी तो रहा है शाहरुख। 
  • तीर—चार बच्चे, इधर—उधर दौड़ रहे हैं। उनके मम्मी—पापा परेशान।
  • रोहन, डोंट! आर्इ् विल पनिश यू...रोहन को परवाह ही नहीं है! 
  • हॉल में एंट्री होने लगी है। न कोई ट्रेलर, न विज्ञापन, सीधा फिल्म शुरू।
  • फिल्म शुरू हुए 10 मिनट बीत चुके हैं, किसी तरह का कोई रिएक्शन नहीं। न शाहरुख की एंट्री पर, न ही उसकी पिटाई पर।
  • नंदू भिड़े के किरदार की एंट्री पर भीड़ थोड़ी सी कुनमुनाई है। 
  • मेरी बगल वाली सीट पर बैठा 6 साल का बच्चा, बार—बार मेरे चश्मे का खोल उठा रहा है। 
  • सर, कोई आॅर्डर, कोक, समोसा, बर्गर ईटीसी...ईटीसी...
  • लोगबाग चना—चबैना लेते रहते हैं, मानो फिल्म देखने नहीं, खाने—पीने के लिए ही आए हों। 
  • खाने—पीने से जब लोगों को फुरसत मिलती है तो लोग थोड़ी सी फिल्म भी देख लेते हैं, थोड़ा सा ठहाका भी लगा लेते हैं। 
  • फिल्म खत्म होने के बाद अब भीड़ निकल रही है। लोगों की स्पीड स्लो है।
  • पता चलता है सामने एक दादी अम्मा चल रही हैं, 75 साल की उम्र। अगल—बगल से दो युवा उन्हें थामे हुए हैं। 
  • मैं शाहरुख खान की इस खास फैन को दिल ही दिल प्रणाम करके घर रवाना हो लेता हूं।